चित्रकूट. अगर आप अरहर की दाल के प्रेमी हैं तो ज़रा ठहर जाइये और एक बार बाज़ार से खरीदी गई दाल पर शक भरी निगाह भी डाल लीजिये. हो सकता है कि वो अरहर की दाल अरहर न होकर हूबहू अरहर सी दिखने वाली खिसारी नामक प्रतिबंधित दाल हो, इतना ही नहीं अगर आप नमकीन के भी शौक़ीन है तो एक बार चने की बनी नमकीनों पर भी गौर कर लीजिये, क्योंकि स्वाद से लिपटी दाल की दालमोठ आपकी ज़िंदगी को मौत की आगोश में ले जा सकती है. यह जानकर आपके पैरो तले ज़मीन खिसक जायेगी कि इस दाल को खाने से आप किस तरह बीमारी की आगोश में समाते चले जाते हैं.
नेशनल वॉयस की टीम ने मानिकपुर मारकुंडी के अतिसंवेदनशील दस्यु प्रभावित क्षेत्र टिकरिया की ग्रामसभा जमुनिहाई पर पड़ताल की तो वहाँ पता चला कि खिसारी नामक दाल जिसको देहाती भाषा में चपड़ी कहा जाता है वो दाल इस गांव के हर चूल्हे में दोनों वक़्त पकती है.
ग्रामीण कोल आदिवासी राजाराम ने कहा कि यह अनाज बिना पानी के आसानी से खेतों में पैदा हो जाता है और इस इलाके में पानी की भी विकराल समस्या है. जिसके कारण हम सब इसकी खेती करके इसको ही खाते हैं और इतना ही नहीं इस दाल का सेवन उनके पूर्वज भी करते रहे हैं. दूसरी बात गरीबी के कारण अरहर की दाल खरीदकर खा पाने में वह अक्षम हैं, जिसके कारण मजबूरन उन्हें सरकार द्वारा प्रतिबंधित अनाज को खाकर पेट की आग बुझाने के लिए विवश होना पड़ता है. ग्रामीणों से जब पूछा गया तो बताया कि उन्हें पता है कि यह खिसारी उर्फ़ चपड़ी दाल उनको विकलांग बना सकती है फिर भी वह इस ज़हरीली दाल को गरीबी की वजह से खाते हैं.
पापी पेट की आग बुझाने के लिए चित्रकूट पाठा के गरीब कोल परिवार चपड़ी नामक ज़हरीली दाल को खाने के लिए मजबूर है, और वो करें भी तो क्या? गरीब कोल मज़दूर जैसे तैसे अपना जीवन यापन करता है जिसके बाद वो 2 वक़्त की रोटी खा पाता है, लेकिन गरीबी का आलम देखिये कि कोल आदिवासी इस ज़हरीली दाल के नुक्सान जानने के बावजूद मौत का निवाला बनाकर इस दाल का सपरिवार सेवन करते हैं.
गांव में देखा जाए तो यहां के लगभग सभी ग्रामीणों के चूल्हे में यह ज़हरीली दाल हर रोज़ पकती है और निवाला निवाला इंसान की ज़िन्दगी मौत की आगोश में समाती जाती है. उप निदेशक कृषि टीपी शाही ने कहा कि प्रतिबंधित राजस्व संहिता के अंतर्गत खिसारी की खेती प्रतिबंधित है. उन्होंने कहा कि इस अनाज को खाने से पैर के गुठने में नुकसान दायक एसिड बनता है जो धीरे धीरे इंसान को दिव्यांग बना देता है तो वहीँ पेट में तमाम तरीके की बीमारियों का शिकार हो जाता है.
सरकार ने इस अनाज को प्रतिबंधित अनाज माना है और इसकी खेती करने वालों पर भी प्रतिबन्ध लगाया है. इसीलिए लोग छुप छुपकर इसकी खेती करते हैं. उप कृषि निदेशक ने नेशनल वॉयस को धन्यवाद देते हुए कहा कि चैनल के ज़रिये हमे पता चला है हम जल्द उस गांव में अपनी टीम भेजकर इस खिसारी उर्फ़ चपड़ी नामक अनाज को परिवर्तित कर गरीबों तक शुद्ध अनाज पहुंचाकर जीवन रक्षा करेंगे.
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